एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवहारिकता
Abstract
एक राष्ट्र, एक चुनाव की अवधारणा भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यापक सुधार का प्रस्ताव रखती है, जिसके अंतर्गत लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएँ। इस नीति का मुख्य उद्देश्य चुनावी प्रक्रियाओं में समय, धन और संसाधनों की बचत करना, शासन में स्थिरता लाना और प्रशासनिक कार्यकुशलता को बढ़ाना है। ऐतिहासिक रूप से भारत में 1951 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव लगभग एक साथ होते रहे, लेकिन बाद में विभिन्न कारणों जैसे सरकारों का समय से पहले गिरना, आपातकाल, और राजनीतिक अस्थिरताकृके चलते यह व्यवस्था टूट गई। आज के परिदृश्य में चुनावी चक्र का लगातार चलता रहना प्रशासनिक कामकाज में व्यवधान उत्पन्न करता है, भारी आर्थिक लागत लाता है और मतदाता तथा सुरक्षा बलों पर अतिरिक्त दबाव डालता है।
इस शोधपत्र में एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवहारिकता का बहुआयामी विश्लेषण किया गया हैकृजिसमें संवैधानिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और तकनीकी पहलुओं के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों का भी अध्ययन शामिल है। साथ ही, नीति के पक्ष और विपक्ष में दिए गए तर्कों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कर व्यावहारिक समाधान और कार्यान्वयन की रणनीतियाँ प्रस्तुत की गई हैं।
मुख्य शब्द-- एक राष्ट्र, एक चुनाव, लोकसभा चुनाव, राज्य विधानसभा चुनाव, चुनावी सुधार, संवैधानिक संशोधन, राजनीतिक स्थिरता, चुनावी लागत, लोकतंत्र, चुनाव आयोग, संयुक्त चुनाव प्रणाली
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