21वीं सदी में भारत को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतिया

Authors

  • डा0 अरविन्द कुमार शुक्ल

Abstract

भारत 21वीं सदी में एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल से गुजर रहा है। जहां एक ओर इसे वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर होने के लिए सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय अवसर मिल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई प्रकार की चुनौतियां भी उत्पन्न हो रही हैं। सामाजिक दृष्टि से, जनसंख्या वृद्धि, गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की असमानता, लैंगिक भेदभाव और शहरीकरण की चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। आर्थिक रूप से, बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, डिजिटल विभाजन, असमान आर्थिक विकास और औद्योगिक क्षेत्र में असंतुलन प्रमुख मुद्दे हैं। इसके अतिरिक्त, ग्लोबलाइजेशन और स्वचालन से भी रोजगार संकट गहरा रहा है। पर्यावरणीय दृष्टि से, जलवायु परिवर्तन, वायु एवं जल प्रदूषण, जैव विविधता की क्षति, वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन गंभीर चिंता के विषय बने हुए हैं। देश में बढ़ता औद्योगीकरण और नगरीकरण इन पर्यावरणीय समस्याओं को और अधिक गहरा बना रहा है।
यह शोधपत्र इन सभी चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण करता है और इनके संभावित समाधान सुझाता है। इसके अंतर्गत शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, सतत आर्थिक विकास की रणनीतियाँ, जलवायु परिवर्तन की रोकथाम हेतु नीतियां, स्वच्छ ऊर्जा संसाधनों का उपयोग और सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा की गई है।
कीवर्ड- सामाजिक असमानता, बेरोजगारी, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक विकास, पर्यावरणीय संकट, डिजिटल विभाजन, सतत विकास, ग्लोबलाइजेशन, औद्योगीकरण

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Published

15-09-2018

How to Cite

1.
डा0 अरविन्द कुमार शुक्ल. 21वीं सदी में भारत को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतिया. IJARMS [Internet]. 2018 Sep. 15 [cited 2025 Jul. 4];1:4-10. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/695

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