भारतीय राष्ट्रीय नवजागरण और उदारवादी राष्ट्रीयताः एक विशद विश्लेषण
Abstract
भारतीय नवजागरण के प्रभाव से वह धुन्ध भारतीय जनमानस के ऊपर से छंटने लगी थी, जिसने भारत को कूप-मण्डूक बना दिया था, जड़ता में जकड़ लिया था, और राजनीतिक पराधीनता देकर उसके वैभव, ऐश्वर्य और शौर्य का हरण कर लिया था। भारतीय समाज में, विशेष रूप से हिन्दू समाज में जो बिखराव हुआ था, उसके फलस्वरूप ही विदेशियों का आक्रमण हुआ और भारत की लूट शुरू हुई, भारत में विदेशी आक्रान्ताओं की राजनीतिक सŸा कायम हुयी। नवजागरण के प्रभाव से भारतीय जनता में अद्भुत चेतना जाग उठी थीं। यह चेतना समान रूप से कई दिशाओं में अपना प्रभाव प्रस्तुत कर रही थीं, जिनमें धार्मिक सुधार, सामाजिक सुधार, अतीत के गौरव के प्रति लगाव, शैक्षिक प्रसार पाश्चात्य प्रभाव का अंगीकार तथा राजनीतिक जागृति। इन तमाम प्रभावों से ओतप्रोत होकर भारत की जनता ब्रिटिश शासकों से सुविधाओं की निरंतर मांग करने लगी थी। ब्रिटिश शासक भारतीय जनता के असंतोष को आक्रोश की सीमा तक नहीं जाने देना चाहते थे, क्योंकि इस आक्रोश का परिणाम वे 1857 की क्रान्ति के रूप में भुगत चुके थे। स्थिति अनकहे तनाव की तरफ बढ़ती गयी और इससे बचने के लिये नए रास्तों की खोज की जाने लगी। कांग्रेस की स्थापना इसी स्थिति की परिणति थी।
शब्द संक्ष्ेप- भारतीय नवजागरण उदारवादी राष्ट्रीयता, रानीतिक पराधीनता, स्वतंत्रता, हिन्दुत्व, राष्ट्रीय पुनरूत्थान, कांग्रेस राष्ट्रीय आंदोलन।
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