भारतीय लोकतंत्र के बदलते आयाम
Abstract
लोकतंत्र शासन की एक प्रणाली ही नहीं अपितु एक जीवन दर्शन भी है। भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है। भारतीय लोकतंत्र की प्राणवायु उसकी समानता, स्वतन्त्रता व बन्धुत्व की भावना का प्रधान होना है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् लोकतंत्र की सफलतापूर्वक प्रतिस्थापना के बावजूद भारत में सभी तरह के लोकतांत्रिक मूल्यों को व्यवहारिक रूप से लागू नहीं किया जा सका है, जिसका प्रमुख कारण भारत की सामाजिक संरचना एवं मूल्यों में अन्तर है। अनेक समस्याओं के बावजूद भारतीय लोकतंत्र में स्थायित्व और निरन्तरता बनी हुयी है। भारतीय जनमानस के विचारों में भी तेजी से परिवर्तन हो रहा है। जातिवाद, क्षेत्रवाद, भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति की बात हो रही है। विकास और रोजगार के मुद्दे आम चुनावों में महत्वपूर्ण बनते जा रहे है। ये समस्त लक्षण भारतीय लोकतंत्र के परिपक्व होने के संकेत दे रहे है।
शब्द पूंजीः- लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, चुनाव, आरक्षण, जातिवाद, क्षेत्रवाद, सामाजिक संरचना, समता, स्वतन्त्रता, बन्धुत्व।
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